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विशेष सूचना - Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "अखिल भारतीय आर्यसमाज विवाह सेवा" (All India Arya Samaj Marriage Helpline) अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall. For More information contact us at - 09302101186

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युगधर्म

वर्ष में प्रायः चालीस पर्व आते हैं। युगधर्म के अनुसार उनमें से दस का निर्वाह बन पड़े तो उत्तम है, वे दस पर्व इस प्रकार हैं - वसंत पंचमी, शिवरात्रि, होली, रामनवमी, गायत्री जयंती, गुरु पूर्णिमा, श्रावणी, जन्माष्टमी, विजयादशमी, दीपावली इन दस का विशेष महत्व है। अतः पर्वों को सोत्साह मनाना चाहिए। जिन्हें जहाँ भावनापूवक मनाया जाता रहता है, वहाँ सुसंस्कारिता की उमंगे उठती रहती हैं और सत्प्रवृत्तियाँ पनपती रहती हैं, जिसकी आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति व समाज के लिए अनिवार्यतः होती है।

There are usually forty festivals in a year. According to Yugdharma, it is best if ten of them are subsistence, those ten festivals are as follows - Vasant Panchami, Shivratri, Holi, Ramnavami, Gayatri Jayanti, Guru Purnima, Shravani, Janmashtami, Vijayadashami, Deepawali These ten have special significance. Therefore, festivals should be celebrated with enthusiasm. Where those are celebrated with passion, there keeps rising the spirits of culture and good tendencies keep on flourishing, which is essential for every individual and society.

  • महर्षि दयानन्द की अन्तिम इच्छा

    महर्षि दयानन्द की अन्तिम इच्छा महर्षि दयानन्द जी ने उदयपुर में अपनी अन्तिम इच्छा लेखबद्ध की थी। उसमें लिखा है कि वेदोक्त धर्मोपदेश और शिक्षा मण्डली नियत करके देश देशान्तर और द्वीपान्तर में भेजकर सत्य के ग्रहण और असत्य का त्याग करने में व्यय करना। ऋषि दयानन्द ने देश शब्द से भारतवर्ष और देशान्तर शब्द से अन्य प्रदेश, इसी प्रकार द्वीप...

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