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गोलोक धाम

आगे भगवान कहते हैं -मैं सबका आश्रय, प्राप्य, पोषक, स्वामी, निवास, शरण सुहृद, उत्पत्ति, प्रलय, आधार, निधान (लयस्थान) और अविनाशी (बीज) हूँ। यह बहुत सुन्दर श्लोक है। भगवान के इन शब्दों पर चिन्तन, मनन करने से यह स्पष्ट समझ में आ जाता है कि इस सम्पूर्ण जगत् का आधार परमात्मा ही है। भगवान कहते हैं कि अर्जुन ! सब भूतों का आश्रय, पालक, पोषक एवं स्वामी मैं ही हूँ। मेरे बिना इस संसार की गति नहीं है। इस दुनियाँ में अगर कुछ प्राप्त करने योग्य है तो वो मैं ही हूँ, इसलिए संसार के पदार्थों से ध्यान हटाकर मुझे पाने की कोशिश कर। अर्जुन ! तेरे कर्मों का साक्षी भी मैं हूँ। मृत्यु के बाद मनुष्य तो भूल जाता है और दुनियाँ वाले भी तेरे शुभाशुभ कर्मों को भूल जाते हैं, पर मैं तेरे सत्कर्मों को ध्यान में रखता हूँ और अगले जन्म में जन्मता हूँ, अतः तू निश्चिंत होकर शुभ कर्म किए जा। फिर भगवान कहते हैं कि सबका निवास स्थान भी मैं हूँ, जीवन के अंत में सब मेरे ही पास आते हैं, क्योंकि जीव का स्थायी निवास यह संसार नहीं है, स्थायी निवास तो मेरा गोलोकधाम है - फिर भगवान कहते हैं कि जीव का सबसे अच्छा मित्र भी मैं हूँ और सुरक्षित शरण भी मेरी ही शरण है।

Further God says - I am everyone's shelter, attainable, nourisher, master, abode, refuge, friend, origin, destruction, support, residence (layasthan) and imperishable (seed). This is a very beautiful verse. By thinking and meditating on these words of God, it is clearly understood that the basis of this entire world is the Supreme Soul. God says that Arjun! I am the shelter, foster, nurturer and owner of all ghosts. There is no movement of this world without me. If anything is attainable in this world, then it is me only, so try to get me by diverting your attention from the things of the world. Arjun! I am also the witness of your deeds. After death man forgets and the people of the world also forget your auspicious deeds, but I keep in mind your good deeds and take birth in the next life, so be sure and do good deeds. Then God says that everyone's abode is also me, everyone comes to me at the end of life, because the permanent abode of the soul is not this world, the permanent abode is my Golokdham - then the Lord says that the best friend of the soul I am also and the safe refuge is also my refuge.

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    महर्षि दयानन्द की अन्तिम इच्छा महर्षि दयानन्द जी ने उदयपुर में अपनी अन्तिम इच्छा लेखबद्ध की थी। उसमें लिखा है कि वेदोक्त धर्मोपदेश और शिक्षा मण्डली नियत करके देश देशान्तर और द्वीपान्तर में भेजकर सत्य के ग्रहण और असत्य का त्याग करने में व्यय करना। ऋषि दयानन्द ने देश शब्द से भारतवर्ष और देशान्तर शब्द से अन्य प्रदेश, इसी प्रकार द्वीप...

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