कैसा बोलना है
हमारी जिव्हा दो कार्य करती है, खाने का तथा बोलने का इसीलिए प्रकृति ने होठ व बत्तीस दाँतों के बीच रखी है अर्थात उस पर पहरेदार स्थापित किए हैं जबकि शरीर के कोई अंग पर ऐसे पहरेदार नहीं है। कितना, कब और कैसा बोलना है यह सब सोच-विचार कर ही हमें शब्दों का उच्चारण करना चाहिए। आवश्यकता है हम शब्द कहने से पहले खूब तोलें फिर भी बोलें। इसके लिए महापुरुषों ने कहा है कि हमेशा थोड़े शब्द बोलें उन्हें तोलकर बोलें आवश्यकता होने पर ही शब्द बोलने का प्रयास करें, आपके हर शब्द मिठास, मधुरता से भरे हों। जिससे किसी को पीड़ा न हो।
Our tongue does two things, eating and speaking, that's why nature has placed it between the lips and thirty-two teeth, that is, guards have been installed on it, while there are no such guards on any part of the body. We should pronounce words after thinking about how much, when and how to speak. It is necessary that we weigh a lot before saying words, yet speak. For this great men have said that always speak few words, weigh them and try to speak words only when necessary, may your every word be full of sweetness and sweetness. So that no one gets hurt.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...