परिकल्पना
भागवत में पिंड में ब्रह्मांड की परिकल्पना की गई है। यह परिकल्पना बीज में वृक्ष की कल्पना के सदृश है। मनुष्य के अंदर ईश्वरीय सत्ता समाई है। मनुष्य में बीज रूप में समस्त ईश्वरीय विभूतियाँ अपने बीज रूप से निहीत हैं। बस आध्यात्मिक ज्ञान एवं चेतना से उन्हें जाग्रत एवं विकसित भर करना है। शाश्वत वर्तमान मनुष्य के संकुचित व्यक्तित्व से आच्छादित है। अतः अहंबद्ध संकीर्णता छोड़कर ही चेतना के उच्चतर आयामों का ज्ञान एवं विकास हो सकता है।
In Bhagwat, the universe has been envisaged in the body. This concept is similar to the concept of a tree in a seed. Divine power is contained within man. All the divine personalities are contained in their seed form in human beings. All they have to do is to awaken and develop them with spiritual knowledge and consciousness. The eternal present is overshadowed by the narrow personality of man. Therefore, knowledge and development of higher dimensions of consciousness can happen only by leaving egoistic narrowness.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...