भगवान महावीर
भगवान महावीर ने कहा है की जीव के साथ जब तक अच्छे व बुरे कर्मों के संस्कारों, प्रभावों का बंधन लगा हुआ है, तब तक यह जीव इस संसार में जन्म-मरण करता हुआ सुख व दुःख भोगता रहेगा। परंतु जब यह जीव अपने सत्य पुरुषार्थ अर्थात अहिंसा, संयम, तप, त्याग, ध्यान आदि के द्वारा इन कर्मों के बंधन को छिन्न-भिन्न कर देगा, तभी यह जीव मुक्ति पाने का अधिकारी हो पाएगा। जीव अपने कर्मों को स्वयं ही नष्ट कर सकता है। यह कार्य वह स्वयं और केवल स्वयं सत्पुरुषार्थ के द्वारा कर सकता है।
Lord Mahavir has said that as long as there is a bond between good and bad karma and the effects of good and bad deeds, then this creature will continue to live in this world and suffer happiness and sorrow. But when this soul breaks the bondage of these actions through his true efforts, i.e. non-violence, restraint, austerity, renunciation, meditation etc., then only this soul will be entitled to attain liberation. The soul can destroy its own karma. He can do this work by himself and only by self-realization.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...