प्रेम व मोह
प्रेम व मोह में अन्य अंतर और है। प्रेम चेतन से होता है, मोह जड़ से। पत्नी आदि से किया जाने वाला तथाकथित प्रेम उसके रूप-लावण्यमय जड़ शरीर से होता है न कि ओर उन्मुखता मात्र हाड़-मांस वाले शरीरधारियों तक ही सीमित नहीं रहती। लकड़ी-पत्थर-चुने के बने मकान, विभिन्न प्रकार के सामानों तक बढ़ जाती है, पर उसके विस्तार का क्षेत्र रहता जड़ ही है। जबकि प्रेम तत्व के जानकार महर्षि याज्ञवल्क्य ने बृहदारण्यक उपनिषद् में स्पष्ट किया है, पत्नी, पत्नी होने के कारण नहीं अपितु आत्मा के कारण प्रिय है। संतान, संतान के कारण नहीं, आत्मा के कारण प्रिय है। यह स्थिति गीता के शब्दों में यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति के कारण है।
There is another difference between love and infatuation. Love comes from the conscious, attachment comes from the root. The so-called love for the wife, etc., comes from her inert body, and not the orientation towards it is not limited to the body-bearers of flesh and blood. A house made of wood-stone-chosen, increases to various types of goods, but the area of its expansion remains inert. Whereas Maharishi Yajnavalkya, a knower of love element, has clarified in Brihadaranyaka Upanishad, wife is dear not because of being a wife but because of the soul. The child is dear not because of the child, but because of the soul. This situation is due to the words of Gita Yo Maa Pashyati Sarvatra Sarvam Cha Mayi Pashyati.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...