व्यक्तित्व की दृष्टि
व्यक्तित्व की दृष्टि से लोकसेवी को अपना विकास इतना प्रखर और उच्च करना चाहिए कि उसकी वाणी से अधिक उसके कर्म प्रेरक बनें। व्यक्तिगत रूप से अपने दृष्टिकोण को साफ करने और उसमें उज्जवलता, धवलता का समावेश करने के साथ ही परिवार के संबंध में भी अपने दृष्टिकोण और रीती-नीति की परिष्कृत कर लेना चाहिए। लोकसेवा का व्रत धारण करने के नाते अपनी आवश्यकताओं को तो काम किया जा सकता है, लेकिन बच्चों की सुविधाओं में तो कटौती नहीं की जानी चाहिए। यदि यह दृष्टिकोण अपनाया गया तो सादगी नाममात्र की चिन्हपूजा बनकर रह जाएगी।
From the point of view of personality, the public servant should make his development so intense and high that his actions should be more motivating than his speech. Apart from cleaning your personal outlook and incorporating brightness, brightness in it, you should also refine your attitude and customs in relation to the family. By observing the fast of public service, one's needs can be worked out, but the facilities of the children should not be cut. If this approach is adopted, simplicity will become a mere symbolism.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...