व्यक्ति की पवित्रता
व्यक्ति की पवित्रता जितनी अधिक बढ़ती है, वह उतना ही प्रकृति के नजदीक होता चला जाता है। वह प्रकृति को अपने भीतर उतना ही अधिक उतारता जाता है, अनुभव करता जाता है, महसूस करता जाता है और प्रकृति भी फिर पल-पल उसकी रक्षा करती है। अस्तु यदि हम सचमुच ही प्रकृति से प्रेम करना चाहते हैं, प्रकृति की पूजा करना चाहते हैं तो हमें भी निष्पाप, निश्छल, निष्कपट व पवित्र होना चाहिए।
The more a person's purity increases, the closer he becomes to nature. The more he brings down nature within himself, goes on feeling, goes on feeling and nature also protects him from moment to moment. Therefore, if we really want to love nature, worship nature, then we should also be sinless, immaculate, sincere and pure.
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वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया...
पाश्चात्य देशों की सोच की नकल करते-करते आज की युवा पीढी मर्यादाहीन हो रही है। विदेश में बहुचर्चित Live in Relationship नाम का कीड़ा, बिना किसी रोक-टोक के हमारे देश में पैर पसारने में कामयाब हो गया है। वर्तमान युवा पीढी दाम्पत्य जीवन में बंधने से पहले अपने जीवनसाथी को परखने के लिए Live in...