वैदिक युग
वैदिक युग में गायत्री महामंत्र के रूप में सूर्य-उपासना देव संस्कृति के केंद्र में आ गई थी। उपनिषदों में सूर्य का पुरुष के रूप में विकास हुआ है। प्राण, आत्मा, ब्रम्ह, प्रजापति के रूप में सूर्य का प्रतिनिधित्व इसके आध्यात्मिक स्वरूप को इंगित करता रहा है। सूर्य को परम सत्य ब्रम्ह के साथ एक मानकर देखा जाता है व साथ ही ओंकार के रूप में सूर्य की समतुल्यता परिभाषित होती है। कुछ स्थानों पर आदित्य के रूप में तो कुछ स्थांनो पर उनके सविकता रूप को परम सत्य ब्रह्म के साथ एक देखा जाता है। इस तरह उपनिषदों में वैदिक सूर्य देवता की ब्रह्म के रूप में उपासना की जाती रही।
In the Vedic age, worship of the sun in the form of Gayatri Mahamantra had come to the center of the deity culture. In the Upanishads, the Sun has developed in the form of a Purusha. The representation of the Sun in the form of Prana, Atman, Brahma, Prajapati has been indicating its spiritual nature. The Sun is seen as one with the Absolute Truth Brahman and at the same time the equivalence of the Sun in the form of Omkar is defined. At some places, in the form of Aditya, in some places His form of Savikata is seen as one with the Supreme Truth Brahman. Thus in the Upanishads, the Vedic sun god was worshiped in the form of Brahma.
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