वेद मन्त्र द्रष्टा ऋषि
महर्षि दयानन्द के जीवन चरित्र से ज्ञात होता है कि उन्होंने चारों वेदों के प्रत्येक मन्त्र को जाना व समझा था तभी वह वेदों पर अनेक घोषणायें कर सके थे। इनमें चारों वेदों में मूर्तिपूजा का विधान कहीं नहीं है, ऐसी घोषणा भी सम्मिलित है। उनकी इस चुनौती को देश भर के बड़े से बड़े किसी पण्डित ने स्वीकार नहीं किया और काशी में इस विषय में जो शास्त्रार्थ हुआ, उसमें भी पूरी काशी व देश के शीर्ष पण्डित वेदों में मूर्तिपूजा का विधायी एक मन्त्र भी नहीं दिखा पाये थे और न ही उस शास्त्रार्थ के 14 वर्ष बाद तक उनके जीवन काल में या आज तक दिखा सके हैं। इस प्रकार से महर्षि दयानन्द चारों वेदों के मन्त्रों के अर्थों के द्रष्टा विद्वान थे। इस कारण उनको न केवल ऋषि अर्थात वेदों के मन्त्रों के अर्थों के द्रष्टा, अपितु महर्षि भी कह सकते हैं। भारत में वेदों का पहली बार मुद्रण उन्हीं के प्रयासों से हुआ जो उनका इतिहास में अन्यतम कार्य है। अतः स्वामी दयानन्द चारों वेदों के ज्ञाता व व्याख्याता की दक्षता रखने के कारण महान ऋषि सिद्ध होते हैं।
It is known from the life story of Maharishi Dayanand that he knew and understood every mantra of the four Vedas, only then he could make many declarations on the Vedas. These include the declaration that there is no provision for idol worship in any of the four Vedas. This challenge of his was not accepted by any of the biggest scholars of the country and in the debate held on this subject in Kashi, even the top scholars of Kashi and the country could not show even a single mantra in the Vedas that provides for idol worship, nor have they been able to show it 14 years after that debate, during his lifetime or till today.
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